राज्य प्रवक्ता
ऑगर मशीन सुरंग के भीतर उलझ गई है। अत्याधुनिक इस मशीन में लोहे के टुकड़े फंसने के साथ ही इसके ब्लैट भी टूट चुकी और अब फिलहाल मशीन को बाहर निकालने की कोशिश की जा रही है। आज सुबह प्लाज्मा कटर सिलक्यारा पहुंच चुका और अब प्लाज्मा कटर से ऑगर मशीन और भीतर फंसे लोहे को काटा जाएगा। साथ ही ऑगर मशीन बाहर लाई जाएगी। ये कहा जा चुका है कि बैंगलौर से आई प्लाज्मा कटर मशीन तेजी से रास्ते में आए व्यवधान को हटाएगी और उसके बाद फिर से मैन्यूली रास्ता बनाकर श्रमिकों को बाहर लाने का रास्ता बनाया जाएगा। योजना के मुताबिक भीतर मौजूद श्रमिकों को भी खोदने कर रास्ता बनाने को कहा जाएगा। रेस्क्यू वर्क चल रहा है लेकिन चट्टान की चट्टान जैसी चुनौतियों के आगे इंसान और इंसान द्वारा बनाई गई मशीनें विवश नजर आ रही हैं। आज पंद्रहवां दिन है और पंद्रह दिनों से श्रमिकों की जिंदगी सुरंग में कैद है, हर कोई चाहता है कि श्रमिक बाहर आएं लेकिन अब तक प्रयासों से सफलता नहीं मिली है। इस बीच अंतरराष्ट्रीय सुरंग और सुराग विशेषज्ञ अर्नाल्ड डिक्स का बयान कि सुरंग को अब ऑगर मशीन नहीं बल्कि मैन्यूली खोला जाए। उनका साफ कहना है कि अभी 20 से 25 दिन लगेंगे। जल्द बाजी में कोई भी कदम उठाना खतरनाक हो सकता है। डिक्स की बात पर ध्यान देना भी जरूरी इसलिए हो जाता है कि तमाम संस्थाएं मानती हैं कि सिल्क्यारा की चट्टानों में ठोस पत्थरों के बजाय लूज मेटेरियल अधिक है। वर्टिकल खुदाई से चट्टान का लूज मलबे से सुरंग के भीतर तेजी से भूस्खलन भी हो सकता है। उत्तरकाशी की स्थित पर नजर दौड़ाए तो यहां डबरानी, वरुणावत, डाबरकोट, खनेड़ा जैसे भूस्खलन जोन हैं और यहां पत्थरों के बजाय मिट्टी अधिक नजर आती है। वरुणावत भूस्खलन के वक्त वाडिया समेत अन्य संस्थानों ने रिपोर्टो में कहा कि उत्तरकाशी कभी ग्लेशियरों से भरा था लेकिन समय के साथ ग्लेशियर समाप्त हुए और उनका मलबे में आबादी बसने के साथ जंगल आबाद हुए। वर्ष 2003 से पहले वरुणावत पर भी पेड़ पौधे थे लेकिन जब लैंड स्लाइड हुआ तो महीनों तक मिट्टी ही गिरती रही। बोल्डरों की संख्या अपेक्षाकृत काफी कम थी। बहरहाल सिलक्यारा को लेकर भी यही सामने आ रहा है कि यहां मिट्टी की अधिकता है और ऐसे में लूज के साथ ज्यादा छेड़छाड़ के परिणाम विवरित भी हो सकते हैं। अधिक जोर आजमांइश और मशीनों के कंपन से राड़ी (यानि खिसकने वाला) की पहाड़ियों को अधिक नहीं हिलाना चाहिए। फिलवक्त दो नई मशीनें पहुंची हैं और ये मशीनें कंपन नहीं करेंगी बल्कि लोहे को काटकर रास्ता बनाएंगी। अब देखना ये है कि इसमें कितनी सफलता मिलती है।