राज्य प्रवक्ता
उत्तराखंड के ब्लाक थलीसैण की पट्टी कंडारस्यूं, बाली कंडारस्यूं, ढाईज्यूली, चौथान समेत अन्य की आराध्या देवी बूंखाल कालिंका आज मेला है। मेले में क्षेत्र के गांव से बड़ी संख्या में लोग ढोल-दमाऊ की घमक पर नाचते हुए पहुंच रहे हैं। गांव देवी के निशाण यानि चिन्ह् लेकर यहां पहुंच रहे और बूखांल कालिका की उस कुंड के दर्शन कर रह हैं, दुर्भाग्य को भी सौभाग्य में बदल देता है। फिलवक्त मेले में लगातार लोगों की भीड़ उमड़ रही है और राठ की आराध्या देवी को पत्र-पुष्प, गंगा जल, दुग्ध, दही, मधू और शकरा से स्नान कराने के साथ ही सरसों का तेल, लैया-राडे के साथ सिरफल चढ़ाकर सुख और समृद्धि की कामना कर हैं। पहले इस मंदिर में नर भैंसे और बकरों की बलि चढ़ाई जाती थी। मनोकामना पूर्ण होने पर देवी को भैंसे और बकरी की बलि चढ़ाये जाते थे लेकिन अब यह बलि प्रथा समाप्त हो गई है और दुग्ध पुष्प से ही काली की पूजा की जाती है। देवी को क्षेत्र की रक्षापाल कहा जाता है।
कैसे हुई उत्पति
यहां कालिका की उत्पति को लेकर बूढ़े-बुजुर्ग कहते हैं कि एक समय की बार गांव के बच्चे जंगल में पशु चुगा रहे रहे तब बच्चों ने शरारत में लुहारों की बेटी को जमीन में गाड दिया। तब वह पिता और गांव के मुखिया के सपने में आई और बताया कि उसने काली का रूप धारण कर लिया है। इस क्षेत्र के सबसे ऊंचे स्थान पर जहां उस बेटी को गाडा गया वहां आज भी उसके चरणों के दर्शन होते हैं।
यहीं वह कुंड जहां दुर्भाग्य भी बन जाता है सौभाग्य
इस गड्डे में कभी नरभैसों और बकरों की बलि चढ़ती थी, इसलिए इसका रंग भी बिल्कुल काला है। भैंसों और बकरों की बलि चढ़ाने के साथ ही राठ के लोग पशुओं के रक्त से तिलक कर राष्ट्र की सुरक्षा का संकल्प लेते थे। इस पूरे क्षेत्र में अधिकतर गांव सैनिकों के गांव है। सेना से अवकाश प्राप्त कर वे गांव में रह रहे हैं और अपने बेटे भी सेना भी सेवाएं दे रहे हैं। इसलिए इस देवी को फौजियों की देवी भी कहा जाता है। कारगिल युद्ध के दौरान यहां मेला इसलिए आयोजित नहीं हुआ कि तब सारे फौजी युद्ध में थे और कालिंका के पश्वा ने कहा कि वह युद्ध में भक्तों के पास है इसलिए इस साल मेला नहीं होगा। उसके अगले साल हजारों की संख्या में फौजियां ने यहां भैंसों और बकरों की बलि दी। फिलवक्त अब यहां बलि बंद हो चुकी।
गोरख्यों ने क्या किया था देवी के साथ
गोरख्याली आक्रमण के दौरान ये भगवती लोगों को आवाज देती कि गोरख्या आ गए भाग जाओ, और लोग छुप जाते थे तब गोरख्यों ने तंत्र का इस्तेमाल कर देवी को उल्टा कर दिया तब से वह आवाज नहीं देती लेकिन कई सैनिक यह भी कहते सुने गए कि उन्होंने कारगिल में अनुभव किया था कि उनके साथ कोई है, जो उनकी मदद कर रहा है। गोली पास आकर भी कहीं टकरा जाती थी।