राज्य प्रवक्ता
नगर निगम देहरादून में स्वच्छता समिति में तैनाती का फर्जीवाड़ा सामाने आने के बाद अब जिलाधिकारी सोनिका ने मुख्य विकास अधिकारी की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया है। कमेटी मामले की जांच कब तक पूरा करेगी यह तो कहा नहीं जा सकता लेकिन फिलवक्त सुपरवाइजर और सफाई निरीक्षक मामले से बाहर निकलने का रास्ता तलाश रहे हैं। निगम में पांच साल से यह खेल चल रहा था और इस तरह 60 करोड़ से अधिक का घोटाला सामने आया है। सूचना एक्टिविस्ट ने निगम से ही सूचना मांगकर सारे साक्ष्य भी प्रशासन के सामने रखे हैं। इनके आधार पर सीधी कार्रवाई कर मामले में जांच कमेटी बनाई जाती तो ज्यादा बेहतर होता। पहले जो सामने आया है उसे तो दंड दिया ही जाना चाहिए था। स्वच्छता समितियां पार्षदों की देखरेख में काम करती हैं। पार्षदों ने कितनी ऊपरी कमाई की और किस-किस ने मलाई चाटी यह भी जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ेगी, साफ हो जाएगा।
किस तरह हुआ खेल
पार्षदों ने एक समिति बनाई और अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष के संयुक्त खातों में निगम समितियों के कर्मचारियों का मानदेय डाला जाता। इसी खाते से पैसे का लेन-देन होता था लेकिन जब नगर निगम इसे परखा तो पता चला कि वार्डों में कर्मचारियों की संख्या बढ़ा कर पैसा डाला जा रहा है। फर्जी कर्मचारी दर्शा कर पैसा चट किया गया। हाजिरी सुपरवाइजर और निरीक्षक भरते रहे। पार्षद आरोपों को निराधार बता रहे हैं। उनका कहा है कि निगम के अधिकारियों ने यह खेल खेला है। पार्षद धरना भी दे रहे हैं।
क्या कहते हैं नगर आयुक्त
नगर आयुक्त गौरव कुमार ने बताया कि निगम प्रशासक ने सीडीओ की अध्यक्ष्ता पर जांच कमेटी बना दी है। ये जांच कमेटी स्वच्छता समितियों में तैनात कर्मचारियों का सत्यापन करेगी। कागजों में कितने और मौके पर कितने कर्मचारी थे, इस बारे में जांच होगी।
कर्मचारियों के वेतन पर लगी रोक
स्वच्छता समितियों के फर्जीवाड़े के चलते कर्मचारियों का दिसम्बर महीने का वेतन पर रोक लगी है। ऐसे में सुपरवाइजरों ने वार्डों में मौके पर काम कर रहे कर्मचारियों के वेतन का बिल तैयार किया। ये बिल लेकर सुपवाइजर एकाउंट अनुभाग में गए तो वहां के स्टॉफ ने बिल लेने से मना कर दिया। इस वजह से मौके पर काम कर रहे कर्मचारियों का वेतन भी अटक गया है।