राज्य प्रवक्ता
पहाड़ की परंपराएं और रीति रिवाज पहाड़ की तरह ही अटल हैं। छह माह कपाट बंद रहने के बाद अक्षय तृतीया के पुण्य अवसर पर यमुनोत्री, गंगोत्री और बाबा केदारनाथ के कपाट्र 10 मई को श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगेँ बाबा केदार की पंचमुखी उत्सव डोली शीतकालीन गद्दी स्थल ओंकारेश्वर मंदिर से रवाना हो चुकी। आज सुबह डोली विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी से रवाना केदारनाथ के लिए चल पड़ी है।
डोली के साथ ही भक्तों का रैला मेला बनता जा रहा है। बाबा धाम की ओर चल पड़े हैं और 10 मई केदार जी के कपाट खुल जाएंगे। यमुनोत्री की डोली 10 मई सुबह खरसाली स्थित शनि मंदिर से यमुनोत्री के लिए प्रस्थान करेगी। गंगोत्री की डोली 9 मई की सुबह मुखवा गांव से प्रस्थान करेगी। कपाट खुलने के साथ ही उत्तराखंड में रौनक लौट आएगी। तीर्थ पुरोहितों के साथ ही प्रशासन ने भी तैयारियों को अंतिम रूप दे दिया है।
बदरीनाथ के कपाट खुलने से पहले तिमुंड्या कौथिग
बदरीनाथ धाम की यात्रा से पूर्व जोशीमठ नृसिंह मंदिर में तिमुंडया कौथिग देव पुजाई समिति आयोजित करती है। यह मेला आस्था और विश्वास का संगम है। इस बार मेला 4 मई को आयोजित किया गया। शनिवार चार मई को नवदुर्गा, भुवनेश्वरी, चण्डिका, धाणी देवता और तिमुण्डया वीर पश्वाओं पर अवतरित हुए। इस दौरान भक्तों द्वारा तिमुंडया वीर को मांस कई मण कच्चा चावल, गुड का भोग लगाया गया। देव पूजाई समिति अध्यक्ष भगवती प्रसाद नम्बूरी का कहना है कि मान्यताओं के अनुसार तिमुण्डया तीन सिर वाला वीर है। माँ नवदुर्गा को दिये वचन को निभाने के लिये इस परम्परा का निर्वहन आदिकाल से किया जा रहा है।।
तिमुंडया वीर को लेकर यह है मान्यता
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार तिमुंडया (तीन सिर वाला) एक असुर जोशीमठ के हयूंणा गांव में रहता था। जहां वो मानव भक्षण कर अपनी उदर पूर्ति करता था। ऐसे में जब एक बार माँ नव दुर्गा भ्रमण पर हयूंण क्षेत्र में पहुंची तो उनके स्वागत को कोई ग्रामीण नहीं आया। जब माता ने इसका कारण पूछा तो उन्हें तिमुंडया दानव के बारे में पता चला। जिस पर माता ने ग्रामीणों को वहां तिमुंडया का आहार न बनने की बात कहते हुए रोक लिया। जिस पर तिमुंडया गांव में पहुंचा और इसके बाद माँ नवदुर्गा और तिमुंडया के बीच युद्ध हुआ। जिसमें माता ने तिमुंडया दावन के दो सिर काट कर उसे पराजित कर लिया। जिस पर व माता का शरणांगत हो गया और माता द्वारा उसे अपने वीर के रुप में शरण प्रदान की गई। साथ ही ग्रामीणों से वर्षभर में एक बार उसे भोग लगाने का वचन लिया। जिसके ग्रामीण तिमुंडया कौथीग के रुप आज भी निभा रहे हैं।
47 साल बाद बदरीनाथ के मुख्य रावल नंबूदरी का टिहरी राज परिवार ने पट्टाभिषेक किया
टिहरी राजवंश के नरेंद्रनगर राजमहल में श्री बदरीनाथ धाम के मुख्य रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी का टिहरी राज परिवार ने पट्टाभिषेक कर इस ऐतिहसिक परंपरा को 47 साल बाद पुनर्जीवित किया है। इससे पूर्व बदरीनाथ धाम के रावल टी. केशवन नंबूदरी का पट्टाभिषेक हुआ था। आगामी 12 मई को बदरीनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शनों को खोले जाएंगे।
बदरी-केदर मंदिर समिति की पहल पर सोमवार को नरेंद्रनगर स्थित टिहरी राजदरबार में राज पुरोहित कृष्ण प्रसाद उनियाल ने विधि-विधान से पूजा करने के बाद बदरीनाथ के मुख्य रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी को महाराजा मन्युजेंद्र शाह, महारानी माला राज्यलक्ष्मी शाह और राज कुमारी श्रीजा ने पट्टाभिषेक करवाया। राज परिवार ने रावल को हाथ में सोने का कड़ा धारण करवाया और अंग वस्त्र भी भेंट किए। बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के मीडिया प्रभारी डॉ़ हरीश गौड़ ने बताया कि रावल की नियुक्ति मंदिर समिति के एक्ट 1939 से पूर्व महाराजा टिहरी द्वारा यह परंपरा की जाती थी। पट्टाभिषेक और सोने का कड़ा रावल को धारण करवाना उसी परंपरा का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रतीक चिन्ह है। बताया इससे पूर्व वर्ष 1977 में धाम के रावल टी. केशवन नंबूरदरी का पट्टा अभिषेक हुआ था, जिसके बाद यह परंपरा रुक गई थी। करीब 47 वर्ष बाद यह परंपरा फिर से शुरू हुई है। इस मौके पर बीकेटीसी के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने कहा कि मंदिर समिति चारधाम यात्रा की तैयारियां पूरी कर चुकी है।