राज्य प्रवक्ता
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
उच्च हिमालय क्षेत्र की सबसे कठिन यात्राओं में एक द्वितीय केदार रुद्रनाथ की डोली गोपीनाथ मंदिर से रवाना हो चुकी है। सागर गांव से करीब 20 किमी खड़ी चढ़ाई चढ़कर रुद्रनाथ मंदिर पहुंचा जाता है। रुद्रनाथ के पूरे रास्ते में प्रकृति का सुदंर रूप सम्मोहन सा असर करता है। पहले जानते हैं रुद्रनाथ की धार्मिक यात्रा के बारे में। भगवान रुद्रनाथ के कपाट 18 मई को ब्रहम मुहूर्त में भक्तों के दर्शनार्थ खोले जाएंगे। साहसी, दृढ़ संकल्प और ईश्वर के प्रति असीम आस्था ही आपको इस यात्रा में शामिल होकर रुद्रनाथ तक पहुंचा सकती है।
यहां भगवान रुद्रनाथ के ग्रीष्मकालीन प्रवास को प्रस्थान के दौरान सैकड़ों भक्तों ने गोपीनाथ मंदिर प्रांगण में दर्शन कर पूजा-अर्चना की। गोपीनाथ मंदिर परिसर में आचार्य वेद प्रकाश भट्ट ने भगवान रुद्रनाथ की चल विग्रह मूर्ति का अभिषेक और वैदिक मंत्रों के साथ पूजा-अर्चना की। इस दौरान स्थानीय ग्रामीणों ने भगवान रुद्रनाथ को नौ-नाज (नया अनाज) अर्पित कर पूजा अर्चना कर कुशलता की मनौतियां मांगी। जिसके पश्चात यहां भगवान रुद्रनाथ को पुजारियों द्वारा भोग लगाने के पश्चात भगवान रुद्रनाथ उत्सव डोली ने अपने शीतकालीन गद्दी स्थल के लिए अधिष्ठाता गोपीनाथ भगवान से विदाई ली। उत्सव डोली वीरवार को पैदल यात्रा मार्ग के ल्वींटी बुग्याल में रात्रि प्रवास के बाद शुक्रवार को रुद्रनाथ मंदिर पहुंचेगी।
जहां शनिवार को पौराणिक परंपरा के साथ ब्रह्म मुहूर्त में भगवान रुद्रनाथ मंदिर के कपाट ग्रीष्मकाल के लिए खोल दिये जाएंगे। द्वितीय केदार भगवान श्री मदमहेश्वर जी के कपाट खुलने की प्रक्रिया बृहस्पतिवार 16 मई से शुरू हो गयी है। इस यात्रा वर्ष श्री मदमहेश्वर जी के कपाट 20 मई को शुभ मुहुर्त पूर्वाह्न 11.15 ( सवा ग्यारह बजे) दर्शनार्थ खुल जायेंगे। पंचकेदार में कल्पेश्वर ही ऐसा है जिसके कपाट साल भर खुले रहते हैं।
पंच केदार
उत्तराखंड में स्थित केदारनाथ के साथ ही चार और कैदार मौजूद हैं। इन सबकी यात्रा बेहद रोचक है। केदारनाथ, मदमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पनानाथ ये पांच केदार हैं। मान्यता के अनुसार महाभारत काल में पांडवों ने गुरु, ब्राह्मण और बंधु-बाधवों की हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए हिमालय की ओर प्रस्थान किया।
महाभारत की समाप्ति के बाद पांडव हत्या के पास मुक्त होने के लिए हिमालय आए। यहां शिव के दर्शन करने चाहे लेकिन लेकिन शिव कहीं नजर नहीं आाए। भीम को एक वृष में शिव नजर आए। भीम के पहचाने जाने पर शिव अंतर्रध्यान हो गए और हिमालय में पांच अलग-अलग स्थानों पर स्वयं प्रकट हुए। पांचों केदार भगवान के एक अंग को समर्पित हैं।
केदारनाथ – शिव का कूबड़
मदमहेश्वर – नाभि भाग
तुंगनाथ : भुजाएं
रुद्रनाथ : चेहरा
कल्पेश्वर : जटा या बाल
रुद्रनाथ :
यह मंदिर चमोली जिले में स्थित है। शिव के द्वितीय नाम से इस मंदिर का नाम रुद्रनाथ। रुद्र का अर्थ क्रोध वाला होता है। शिव प्रचंड तूफान या प्रलय का भी रूप माना जाता है, इसलिए उनका एक नाम प्रलयंकर भी है। पंच केदार में एक इस मंदिर में केदारनाथ और तुंगनाथ के दर्शन के बाद जाया जाता है। यहां शिव के मुख को नीलकंठ के रूप में पूजा जाता है।
मंदिर 3590 मीटर की ऊंचाई पर एक प्राकृतिक चट्टान की गुफा में स्थित है। भगवान रुद्रनाथ मंदिर के मंदिर से नंदा देवी, त्रिशूल और हाथी पर्वत के साथ-साथ अन्य बर्फ से आच्छादित अनेक चोटियों के दर्शन होते हैं।
कैसे पहुंचे
यह मंदिर ऋषिकेश से 219 किमी दूर चमोली जिले में है। गोपेश्वर से 5 किमी दूर सागर गांव से रुद्रनाथ जी का पैदल रास्ता शुरू होता है। 20 किमी की ऊंची चढ़ाई के बाद पैदल चलना पड़ता है। रास्ता जरूरी कठिन है लेकिन प्राकृतिक नजारों में ऐसा मन लगता है कि रास्ते का पता नहीं चलता।
वैतरणी और रुद्रगंगा
मंदिर के ठीक पास एक साफ पानी की धारा है जिसे वैतरिणी या रुद्रगंगा नदी के नाम से जाना जाता है। इसे लोकप्रिय रूप से ‘मुक्ति का जल’ भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह वह नदी है जिससे मृत व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करने के लिए दूसरी दुनिया में पहुंचते हैं। इसलिए अधिकांश लोग अपने मृतकों के लिए अनुष्ठान करने और हिंदू शास्त्रों के अनुसार पिंडदान करने के लिए रुद्रनाथ जाते हैं। यहां किया गया पिंडदान पवित्र शहर गया में किये गये पिंडदान से कई गुना अधिक पवित्र माना जाता है। मंदिर कई छोटे जल कुंडों से घिरा हुआ है जिन्हें सूर्य कुंड, चंद्र कुंड, तारा कुंड और मानस कुंड कहा जाता है।