श्राद्ध पक्ष में 45 हजार यात्री पहुंचे ब्रहमकपाल
गोपेश्वर: पितृविसर्जन के मौके पर शनिवार को बदरीनाथ धाम के ब्रह्म कपाल तीर्थ में पितृ तर्पण और पिंडदान करने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। धाम में इस वर्ष श्राद्ध पक्ष में करीब 45 हजार श्रद्धालुओं ने पिंडदान और तर्पण कर पित्रों के मोक्ष की पूजा-अर्चना की है।
बीकेटीसी के मीडिया प्रभारी हरीश गौड़ ने बताया कि बारिश का मौसम समाप्त होने के बाद श्राद्ध पक्ष में बदरीनाथ धाम की तीर्थयात्रा ने रफ्तार पकड़ ली है। ऐसे में श्राद्ध पक्ष में प्रतिदिन 4 हजार से अधिक तीर्थयात्री ब्रह्म कपाल तीर्थ में पिंडदान और तर्पण के लिए पहुंच रहे थे। वहीं पितृ विसर्जन के दिन यह संख्या करीब 7 हजार के आसपास थी। ब्रह्म कपाल के तीर्थ पुरोहित उमानंद सती का कहना है कि श्राद्ध पक्ष में स्थानीय श्रद्धालुओं के साथ ही बड़ी संख्या में देशी और विदेश श्रद्धालु भी अपने पित्रों के मोक्ष के निमित ब्रह्म कपाल तीर्थ में पिंडदान व तर्पण के लिए पहुंचते हैं।
पिंडदान और तर्पण के लिए क्यों श्रेष्ठ है ब्रह्म कपाल तीर्थ
हिन्दू मान्यता के अनुसार सृष्टि की उत्पति के समय जब ब्रह्मा मां सरस्वती के रूप पर मोहित हो गए तो भोलेनाथ ने क्रोध में आकर ब्रह्मा के पांच सिरों में से एक को त्रिशूल के वार से काट दिया। तब सिर त्रिशूल पर ही चिपक गया। ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए जब भोलेनाथ पृथ्वी लोक के भ्रमण पर गए तो बदरीनाथ से करीब पांच सौ मीटर की दूरी पर त्रिशूल से ब्रह्मा का सिर जमीन पर गिर गया। तभी से यह स्थान ब्रह्म कपाल के रूप में प्रसिद्ध हुआ। शिवजी भी इसी स्थान पर ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हुए थे। गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए स्वर्ग की ओर जा रहे पांडवों ने भी इसी स्थान पर अपने पितरों को तर्पण दिया था। जिसके चलते पितृ पक्ष में यहां पिंडदान और तर्पण देने का विशेष महत्व है।