राज्य प्रवक्ता
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में बाबा केदारनाथ के चार प्रतिरूप हैं, इन्हीं में से एक द्वितीय केदार विश्व मद्महेश्वर शीतकाल में साधु-संतों की तपस्थली बन जाता है। यहां महकते फूलों की खूशबू, दूर तक फैले बुग्याल वन्य जीवों की चौकड़िया, पक्षियों की चहचहाट और दूर तक फैली हिमालय की श्वेत चोटियां मन को असीम शांति प्रदान करती है। मद्महेश्वर धाम के शीर्ष के भाग को बूढ़ा मदमहेश्वर भी कहा जाता है। बुग्यालों के चारों ओर यहां भोजवृक्ष के पेड़ हैं। कई साधु-संत यहां आज भी तप में लीन रहते हुए हिमालय के निकट रहकर ईश्वर साधना में लीन हैं।
मद्महेश्वर धाम से करीब तीन किमी दूरी तय करने के बाद बूढा़ मद्महेश्वर धाम पहुंचा जा सकता है, बूढा़ मद्महेश्वर धाम से चौखम्बा की पर्वत श्रृंखलाओं को काफी नजदीक से देखा जा सकता है। बूढा़ मद्महेश्वर धाम के तीन ओर से बुग्यालों से घिरा है। यहां से मद्महेश्वर घाटी की सैकड़ों फीट गहरी खाईयों व असंख्य पर्वत श्रृंखलाओं को दृष्टिगोचर करने से आंखे प्राकृतिक आनन्द से तृप्त हो जाती हैं। बूढा़ मद्महेश्वर व चौखम्बा के मध्य पनपतिया तथा कांचीनटिडा पर्वत से कई पैदल मार्ग हैं, किन्तु यहां पैदल सफर करना बड़ा जोखिम भरा है। इन पैदल ट्रैकों से केदारनाथ, बद्रीनाथ, उर्गम घाटी तथा पाण्डुकेशर पहुंचा जा सकता है। बूढा़ मद्महेश्वर से लगभग 25 किमी दूरी पर पाण्डव सेरा नामक स्थान है, जहां पाण्डवों द्वारा बोई गयी धान की फसल आज भी स्वत: उग जाती है। मान्यता है आज भी शीतकाल में इन स्थानों में देवता प्रकट होकर शिव पूजन करते हैं।