राज्य प्रवक्ता
मां अनुसूया, शायद ही उत्तराखंड में ऐसा हो जो मां की महिमा को ना जानता हो। उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित सती अनुसूया नि:संतान को संतान का वरदान देती हैं। अनुसूया वहीं हैं, जिसकी सत्तीत्व की परीक्षा लेने स्वयं ब्रहमा, विष्णु और महेश आए थे लेकिन वे नवजात शिशु बनकर दुग्ध पान करने लगे। आज दतात्रेय का जंन्म दिन है और इस दिन हर साल अनुसूया मां के पास संतान की मनोकामना लेकर देश के कई राज्यों के श्रद्धावान मां अनुसूया मंदिर में दो दिन तक होने वाले मेले में पहुंचते हैं। संतान दायिनी दत्तात्रेय जयंती के अवसर पर क्षेत्र की सभी देवियों डोलियां भी सती मां अनुसूया के मंदिर पहुंचते हैं। पौराणिक काल से दत्तात्रेय जयंती पर हर वर्ष सती माता अनुसूया में दो दिवसीय मेला लगता है। पुराणों का संदर्भ ले तो यह स्पष्ट होता है कि एक बार नारद ने पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती से कहा कि त्रिलोक में सबसे महान सती तो अनुसूया है। वह पतिव्रता है। देवियों को ईष्या हुई और उन्होंने अनुसूया की परीक्षा लेने के उदे्श्य से अपने पतियों को परीक्षा लेने भेजा। कहा कि अनुसूया के सामने कहना कि वे उन्हें नग्न देखना चाहते हैं। तीनों देव अनुसूया के पास पहुंचे और इच्छा व्यक्त की। अनुसूया उन्हें पहचान गई और पात्र से जल छिड़क तीनों को नवजात शिशु होने को कहा। त्रिदेव शिशु में बदल गए और फिर अनुसूया ने उन्हें दुग्ध पान करवाना शुरू करवाया। देवियां चिंतत हो गई कि हमारे पति कहां गए। नारद ने रहस्य से पर्दा हटाते हुए कहा कि वे शिशु में बदल गए हैं। अनुसूया उन्हें दुग्ध पान करवा रही हैं। देवियों का घमंड चूर हुआ और वे जब गौतम ऋषि के आश्रम पहुंची तो रोने लगी। अनुसूया से पतियों को मुक्त करने की प्रार्थना करने लगी। अनुसूया मान गई और उन्हें उनकी पत्नियों को सौंप दिया। त्रिदेव व तीनों देवियों ने वचन दिया कि जो भी आपसे संतान मांगेगा उसकी मनोकमाना पूर्ण होगी और तब से हमेशा यहां संतान प्राप्ति की लालसा से लोग आते हैं और फिर संतान लेकर अनुसूया का आशीर्वाद लेने आते हैं।