धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले धामों की यात्रा एक बार जरूर करें
राज्य प्रवक्ता
एकादश ज्योर्तिंलिंग भगवान केदारनाथ के कपाट आज सुबह 7 बजे वैदिक मंत्रोच्चार और पौराणिक विधि-विधान से श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोल दिए गए। कपाट खुलने के साथ ही उत्तराखंड में यात्रा का श्री गणेश भी हो गया है। अब 12 मई को श्री बदरीनाथ के कपाट खुलने हैं, कपाट खुलने की पौराणिक परंपराएं गतिमान हैं।
असल में केदारनाथ ही एक ऐसा ज्योर्तिंलिंग है, जहां शंकर के लिंग की नहीं बल्कि पृष्ठ भाग की पूजा होती है। महाभारत काल की एक घटना से केदारनाथ जुटा हुआ है। महाभारत में पांडवों पर ब्रहम, ब्राहमण, बंधु बांधव की हत्या का पाप का चढ़ा और इस पाप से मुक्ति के लिए पांडवों को शरीर त्यागने से पहले पाप से मुक्त होना था। स्वर्गारोहिणी से उन्हें स्वर्ण का मार्ग बताया गया था। पांड़व केदारनाथ पहुंचे यहां उनकी शिव दर्शन की इच्छा हुई किंतु शिव ने उन्हें दर्शन नहीं दिए। एक वृष वहां उन्हें चरता हुआ नजर आया। पांडवों को शंका हुई कि कहीं ये ही तो शिव नहीं। भीम ने दोनों पांव फैला कर वृष (नंदी) का रास्ता रोक दिया। नंदी आगे नहीं बढ़ा तो भीम ने उनकी पूंछ पकड़ ली। नंदी यहां अंर्तध्यान हो गए और मात्र उनका पृष्ठ भाग ही पांडवों को नजर आया। पृष्ठ भाग ही एकादश ज्योर्तिलिंग है। केदारनाथ को परम दयालु और न्यायाधीश के तहत हैं। बाबा काये द्वार ऐसा है, यहां पहुंचने वाले प्रत्येक जीव का हिसाब किताब भैरव करते हैं। केदार मंदिर के बांयी और ऊंचाई पर भैरव देवता का वास है। यहां से केदारपुरी पर संपूर्ण दृष्टि पड़ती है। 2013 में इसी ऊंचाई से केदारपुरी के फोटो कैद किए गए। यही बड़ी वजह भी है कि न्यायाधीश और न्याय विभाग से जुड़े अधिकारी यहां अकसर शीश झुकाने आते हैं। सतगुरु ब्रहमलीन श्री 1008 शंकराचार्य जी महाराज माधवाश्रम जी से मुलाकात में अकसर उनके उत्तराखंड के तीर्थ और मठों पर चर्चा होती थी। केदारनाथ जाए तो मन में पूरी श्रद्धा के साथ भगवान के जरूर मनौती करें। मंदिर की एक परिक्रमा करें और भैरव के पास जरूर हाजिरी लगाए। कहते हैं कि केदार मंदिर की गर्भगृह में प्रवेश के बाद वहां से बाहर आने वाले प्रत्येक जीव का नया जन्म होता है और आस्थावान भी इस पर विश्वास करतें है। बाबा का मुख पशुपति नाथ में हैं और वहां स्थित मुखमंडल भी केदारनाथ की तरह ही काले रंग का है।
सप्तऋषि कुंड से प्रभावित यमुना की धारा वसुंधरा के लिए वरदान है। आज कपाट खुलने के साथ अब भक्तों को यमुना के मूर्ति रूप के दर्शन होंगे। कालिंदी पर्वत की तलहटी में स्थित यमुना जी को लेकर पौराणिक कथा है कि यह धर्मराज यम की पुत्री हैं। शनि इनका भाई है। आज खरशाली गांव से शनि महाराज की अगुवाई में यमुनोत्री की डोली यमुनोत्री पहुंची और कपाट बंद होने पर शनि महाराज ही यमुना को लेने यमुनोत्री पहुंचते हैं। यहां यमुना में स्नान का महत्व सप्त अवमेघ के समान माना गया है। बहन और भाई यहां यमुना में एक साथ स्नान करें तो फिर कल्याण ही कल्याण है।
पवित्र मकरवाहिनी गंगा के मंदिर गंगोत्री के कपाट भी आज खुल गए हैं। राजा भागीरथ की तपस्थली गंगोत्री में कई रहस्य छुपे हुए हैं। राजा सगर के 60 हजार पुत्रों को मुक्ति के लिए राजा भागीरथ के साथ चलने वाली गंगा मैया की पवित्र धारा गोमुख से प्रभावित होती है। गंगा के उद्गम से सागर में समाने तक इसमें जो भी नदी मिलती है वह गंगा हो जाती है। गंगा में मिलने वाला हर प्राणी मुक्ति पाता है। जरा रोगों से भी गंगा जल ही मुक्ति प्रदान कर सकता है।