राज्य प्रवक्ता
यमुना के मायके बड़कोट नगर पालिका का चुनाव दिलचस्प मोड पर है। यहां घमासान साफ नजर आ रहा है। इस सीट पर कुल 10,813 मतदाता हैं और ऐसे में नाते, रिश्तेदारी समेत प्रत्याशी की व्यक्तिगत इमेज भी चुनाव को प्रभावित करेगी। बड़कोट पालिका में यदि अधिकतम 70 प्रतिशत भी मतदान होता है तो कुल सात हजार वोट पड़ेंगे। अब रिर्जल्ट का जो फासला होगा वह मात्र सैकड़े के अंकों में होगा। यहां भाजपा के अनुभवी व राजनीति समीकरणों को पलटने में माहिर अतोल रावत अध्यक्ष पद के प्रत्याशी हैं। अतोल की बात करें तो अतोल रावत पूर्व में पालिका अध्यक्ष रह चुके हैं और उनके लोगों से गहरे संबंध भी हैं। देखें तो अतोल घर-घर पहले से ही संपर्क में हैं और नामांकन के बाद कुछ दिन प्रतिद्वंदियों पर जमकर बरसे लेकिन अब उनकी गर्ज-तर्ज मौन है और खामोशी से प्रचार में हैं। सिलक्यारा के रेट माइनर्स की तरह वे कहां सुरंग बना रहे हैं, फिलहाल इसकी जानकारी नहीं मिल पा रही है। बकौल अतोल रावत वे टिकट मिलते ही जीत चुके हैं और उनकी जीत में किसी को भी शक नहीं होना चाहिए।
इधर निर्दलीय विनोद डोभाल उपनाम कुतरू पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं और नामांकन दर्ज करने के बाद कुतरू का चुनाव प्रचार अभियान पूरे जोरों पर है। टीम वर्क और चुनाव प्रबंधन वे स्वयं देख रहे हैं। प्रचार अभियान के दौरान उनकी एक-एक वोटर को पकड़ने की कोशिश है। असल में कुतरू एक नेता के तौर पर नहीं बल्कि एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में लगातार क्षेत्र में सक्रिय रहे। युवा विनोद डोभाल कुतरू के साथ युवाओं की टीम पहले से ही जुड़ी हुई है और यही वजह है कि चुनाव मैदान में उनके ताल ठोंकते ही भाजपा-कांग्रेस के चेहरे पर चिंता की लकीरें खींच गई थी। यमुनाघाटी की राजनीति में कुतरू अब नया चेहरा जुड़ गया है और इस के चुनाव परिणाम कुतरू के अनुकूल रहे तो वे भविष्य में उत्तरकाशी की राजनीति के केंद्र में रहेंगे। बहरहाल कांग्रेस के विजय पाल रावत भी मेहनत में जुटे हैं, कांग्रेस का यहां कैडर वोट है, वहीं राजाराम जगूड़ी भी व्यापारियों की वोट का रूख अपनी ओर करने में जुटे हैं। गौरतलब हो कि वोटर और वोट का अंतर कम होने की संभावनाओं के साथ ही मतदान प्रतिशत भी यहां अहम रहने वाला है, ऐसे में जीत-हार को लेकर राजनीति के विशेषज्ञ भी कुछ कहने को तैयार नहीं है।